"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
रविवार, 10 अप्रैल 2016
ये हँसी .......
कभी कभी ये हँसी उमगती है किलकती है बस एक झीनी सी ओट दे जाने को और आँसुओं को ख़ुशी के जतलाने को और हाँ ये आँसू भी तो बेसबब नही इनसे ही तो बढ़ जाता नमक जिंदगी में ...... निवेदिता
आपने लिखा... कुछ लोगों ने ही पढ़ा... हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें... इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 12/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के अंक 270 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंBadhiya ...
जवाब देंहटाएंआपने लिखा...
जवाब देंहटाएंकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 12/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 270 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
आभार !!!
हटाएंआभार !!!
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता , सच है आशुओं से नमक बढ़ता है ज़िंदगी मे
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआभार !!!
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