आसमान के
सियाह गिलाफ़ पर
चाहा बस
तारों की झिलमिल छाँव
बेआस सी ही थी
ये अंधियारी रात
बस किरन टंकी
इक चुनर लहरायी
इन्द्रधनुष के रंग
झूम के छम से छा गये
सपनीले तारों की
पूरी बरात ही
दामन में सज गयी …… -निवेदिता
सियाह गिलाफ़ पर
चाहा बस
तारों की झिलमिल छाँव
बेआस सी ही थी
ये अंधियारी रात
बस किरन टंकी
इक चुनर लहरायी
इन्द्रधनुष के रंग
झूम के छम से छा गये
सपनीले तारों की
पूरी बरात ही
दामन में सज गयी …… -निवेदिता
सुन्दर कविता ..........
जवाब देंहटाएंbadhiya hai. mera baraha kaam nahin kar raha so roman me likhna padaa :(
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (10-09-2015) को "हारे को हरिनाम" (चर्चा अंक-2094) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया दी
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