चलते - चलते कोई भी वाहन जब अचानक ही रुक जाता है तब सबसे पहले तो आर्श्चय का एक झोंका सा आता है ,कि ये हुआ क्या और जैसे ही सच्चाई की प्रतीति होती है तुरंत ही खुन्नस सी ( गुस्सा इस अनुभूति के लिए सही शब्द नहीं है ) होती है कि ये मेरे साथ ही होना था और जिस नामालूम से काम ( ? ) के लिए जा रहे होते हैं वो काम एकदम से जीवन - मरण का प्रश्न बन जाता है :(
वाहन को दुबारा शुरू करने का प्रयास करने के पहले ही हमारा मन यही चाहता है कि कहीं से कोई देवदूत सा आ जाए इस समस्या को सुलझाने के लिए … पर ये सब तो सिर्फ किस्से - कहानियों में ही सम्भव है …
अपने जीवन में अनायास आ बरसने वाले ऐसे किसी भी दोस्त की मान - मनौव्वल तो हम को ही करना है ,ये ज्ञान जागृत होते ही बस धुन बजने लगती है "चढ़ जा बेटा सूली पर ,भली करेंगे राम " .... और बस इस मन और मनोबल के जगते ही रुकी हुई गाड़ी भी गुर्राने लगती है और चल देती है अपनी मंज़िल की ओर … :)
ये सिर्फ किसी वाहन के साथ ही नही अपितु संबंधों में भी होता है , वाहन के कार्बोरेटर में आये हुए कचरे की ही तरह मन में मालिन्य जमा हो जाता है ,कभी अकारण तो कभी सकारण - अब हम पहले तो दूसरे व्यक्ति को ही दोषी मानते हैं ,फिर कुछ समय बाद चाहते हैं कि कोई और आकर संबंधों को ठीक करवा दें .... यदि इतना सब न हो पाये और वो संबंध हम बनाये रखना चाहते हैं तब कहीं जा कर हम अपने प्रयास करते हैं …
मेरा इतना कहने का उद्देश्य सिर्फ इतना समझना है कि रुके हुए काम को दुबारा शुरू करने के लिए परिश्रम से कहीं ज्यादा जरूरत एक दृढ़ संकल्प - शक्ति की होती है . अब इधर कुछ लम्बे समय से मेरे ब्लॉग की गाड़ी भी हिचकोलें खाती अटक - अटक कर चल रही थी . रोज सोचती थी आज से ब्लॉग लिखना और पढ़ना भी नियमित करूँगी ,पर " वही ढाक के तीन पात " वाली स्थिति बनी रह जाती थी जबकि कई इतने रोचक विषय भी सूझे पर .... तो आज अपने मन की लगाम को कस के थामा और इसी विषय पर लिख कर एक बार फिर से नियमित होने का प्रयास कर रही हूँ … निवेदिता
वाहन को दुबारा शुरू करने का प्रयास करने के पहले ही हमारा मन यही चाहता है कि कहीं से कोई देवदूत सा आ जाए इस समस्या को सुलझाने के लिए … पर ये सब तो सिर्फ किस्से - कहानियों में ही सम्भव है …
अपने जीवन में अनायास आ बरसने वाले ऐसे किसी भी दोस्त की मान - मनौव्वल तो हम को ही करना है ,ये ज्ञान जागृत होते ही बस धुन बजने लगती है "चढ़ जा बेटा सूली पर ,भली करेंगे राम " .... और बस इस मन और मनोबल के जगते ही रुकी हुई गाड़ी भी गुर्राने लगती है और चल देती है अपनी मंज़िल की ओर … :)
ये सिर्फ किसी वाहन के साथ ही नही अपितु संबंधों में भी होता है , वाहन के कार्बोरेटर में आये हुए कचरे की ही तरह मन में मालिन्य जमा हो जाता है ,कभी अकारण तो कभी सकारण - अब हम पहले तो दूसरे व्यक्ति को ही दोषी मानते हैं ,फिर कुछ समय बाद चाहते हैं कि कोई और आकर संबंधों को ठीक करवा दें .... यदि इतना सब न हो पाये और वो संबंध हम बनाये रखना चाहते हैं तब कहीं जा कर हम अपने प्रयास करते हैं …
मेरा इतना कहने का उद्देश्य सिर्फ इतना समझना है कि रुके हुए काम को दुबारा शुरू करने के लिए परिश्रम से कहीं ज्यादा जरूरत एक दृढ़ संकल्प - शक्ति की होती है . अब इधर कुछ लम्बे समय से मेरे ब्लॉग की गाड़ी भी हिचकोलें खाती अटक - अटक कर चल रही थी . रोज सोचती थी आज से ब्लॉग लिखना और पढ़ना भी नियमित करूँगी ,पर " वही ढाक के तीन पात " वाली स्थिति बनी रह जाती थी जबकि कई इतने रोचक विषय भी सूझे पर .... तो आज अपने मन की लगाम को कस के थामा और इसी विषय पर लिख कर एक बार फिर से नियमित होने का प्रयास कर रही हूँ … निवेदिता
good going... लिखते रहिये अब
जवाब देंहटाएंprerit karne wali rachna
जवाब देंहटाएंBadhiya... Best wishes
जवाब देंहटाएंmujhe bhi waapas loutna hai... aapke vichar madad karenen ...
thanks & most welcome :)
हटाएंकुछ न कुछ लिखने का मन बना लें तो लिखा ही जाता है ... फिर उसे ब्लॉग पर डालना आसान हो जाता है ... शुरुआत कीजिये जल्दी ही ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मनोबल बढ़ाने का ....
हटाएंआभार आपका !
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की १००० वीं बुलेटिन, एक ज़ीरो, ज़ीरो ऐण्ड ज़ीरो - १००० वीं बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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