आज फिर से मिलेंगी
ढेर सारी दुआयें
कोई बोलेगा सुखी रहो
तो तुरंत ही दूजा बोले उठेगा
दीर्घायु हो जीवन का सुख पाओ
कोई सौभाग्य की तो
कोई सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि की
हर वर्ष की तरह
मैं फिर से सोच रही हूँ
क्या दुआओं में सिर्फ यही होना चाहिए
या कहूँ जीवन के सुख की
निश्चित निश्चिंतता के लिए
अनिवार्य कारकों में जरूरी है
सुख ,सौभाग्य ,सामाजिक प्रतिष्ठा
काश !
किसी ने … किसी एक ने भी
अपनी दुआ में माँगा होता
मेरे दिल का सुकून ....
एक ऐसा सुकून जो मिल सकता है
सिर्फ तभी जब कभी भी कहीं भी
अपने अल्हणपने में बेबाक निकल सके
हमारी बेटियाँ .... और हाँ
अपनी खिलखिलाहट रोकने को
न ढांकना पड़े अपने चेहरे को …
आज हर खबर में छाईं हैं बेटियाँ
पर उनकी उपलब्धि नहीं
बस पीड़ित हो कर
वहशियों के मानसिक (?) दिवालियेपन का
विज्ञापन सा बन गयी हैं बेटियाँ …
हर बार की तरह
शहर बदल गया और नाम बदल गया
बस वहशत के हवाले हो गयीं बेटियाँ ....…… निवेदिता !
काश ! काश की कोई समझ सके इस पीड़ा को। दुःखद स्थिति ...!
जवाब देंहटाएंएक ऐसा सुकून जो मिल सकता है
जवाब देंहटाएंसिर्फ तभी जब कभी भी कहीं भी
अपने अल्हणपने में बेबाक निकल सके
हमारी बेटियाँ .... और हाँ
अपनी खिलखिलाहट रोकने को
न ढांकना पड़े अपने चेहरे को …bahut sundar abhiwkti !!
bahut sundar kaamna kee hai apane , aisi hi kamana poori karne ke lie ishvar se prarthana karti hoon.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावप्रणव रचना।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, पानी वाला एटीएम - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंअंत तो निरुत्तर कर गया...| हार्दिक बधाई...ऐसी मर्मस्पर्शी रचना के लिए...|
जवाब देंहटाएंकी हैं ऐसी भी दुआएँ...बस असर होने का इंतज़ार है...
जवाब देंहटाएंसस्नेह
अनु
हृदयस्पर्शी ..... ये अमानवीयता आखिर कब तक...
जवाब देंहटाएंमन को छूती है आपकी पुकार ... कब तक ढोना होगा नारी को ....
जवाब देंहटाएंअंतिम पंक्तियां मन को छूती हुई ....
जवाब देंहटाएंमैं दुआओं में यही मांगती हूँ
जवाब देंहटाएंबेहतरीन और बहुत कुछ लिख दिया आपने.....
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