ये मौसम ,
बड़े ही अजीब होते
उन कदमों से
इन आँखों तक
रोज ही
अपनी राह बदलते हैं
कभी नम
कभी खुश्क साँसें भर
बसंत को पतझर
बना निर्जीव कर जाते हैं
सफर
फूलों का
बस इतना सा ही है
उस शाख से
पूजा की डोली तक
और कभी
दुल्हन की डोली से
कदम बढ़ा
उस की अंतिम शय्या तक
निष्कंटक
बनी शाख की
अनछुई छुवन
अधखिले फूलों सी
तीली के लब पर
कंपकंपाती थिरकन
ख़यालों के
हर निशान समेटती
वो तपन
मासूम से शोलों की ....... निवेदिता
माना की कम है फूलों का सफर ... पर है तो खूबसूरत ... जिसकी तलाश है सबको ...
जवाब देंहटाएंनिष्कंटक
जवाब देंहटाएंबनी शाख की
अनछुई छुवन
अधखिले फूलों सी
तीली के लब पर
कंपकंपाती थिरकन
ख़यालों के
हर निशां समेटती
वो तपन
मासूम से शोलों की ...वाह दी!!! बेहद सुंदर पंक्तियाँ अनुपम भाव संयोजन...:))
अभी तो ठंडक ने अंदर तक जमा कर रखा हुआ है :)
जवाब देंहटाएं.
ख्याल भी जम से गए दी :)
बचपन में पुष्प की अभिलाषा पढ़ी थी और आज पुष्प की यात्रा देखी.. एक शब्द में कहूँ तो 'सम्पूर्ण'!!
जवाब देंहटाएंभैया आज तो आपने एकदम से सातवें आसमान पर पहुंचा दिया ... सादर !!!
हटाएंसलिल दादा ने मेरे मन की बात लिख दी ... :)
जवाब देंहटाएंप्रणाम भाभी |
भईया ,शब्दों की ऐसी कंजूसी कि भैया के शब्दों से ही काम चला लिया ..... सस्नेह :)
हटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट लघु कथा
चर्चा - मंच में सम्मिलित करने के लिये आभार आपका :)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया यशवंत ..... शुभकामनाएं तुमको :)
जवाब देंहटाएंब्लाग बुलेटिन में सम्मिलित करने के लिये आभार :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर......
जवाब देंहटाएंनिष्कंटक
बनी शाख की
अनछुई छुवन
अधखिले फूलों सी
तीली के लब पर
कंपकंपाती थिरकन..................वाह!!!
सस्नेह
अनु
भावपूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर... उत्कृष्ट रचना,,,,
जवाब देंहटाएंअनुपम अभिव्यक्ति ! बहुत ही सुंदर रचना ! वाह !
जवाब देंहटाएंसफर
जवाब देंहटाएंफूलों का
बस इतना सा ही है
उस शाख से
पूजा की डोली तक
और कभी
दुल्हन की डोली से
कदम बढ़ा
उस की अंतिम शय्या तक
दिल को छूती सुन्दर भावाभिव्यक्ति
आभार.
नववर्ष की शुभकामनाएँ.
कंपकंपाती थिरकन
जवाब देंहटाएंख़यालों के
हर निशां समेटती
वो तपन
मासूम से शोलों की ..
....... सुंदर पंक्तियाँ
नई पोस्ट पर आपका सवगत है निवेदिता जी
जवाब देंहटाएं.... खामोश रही तू :))
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
बेहद खूबसूरत भाव
जवाब देंहटाएंनिष्कंटक
जवाब देंहटाएंबनी शाख की
अनछुई छुवन
अधखिले फूलों सी
तीली के लब पर
कंपकंपाती थिरकन
ख़यालों के
हर निशान समेटती
वो तपन
मासूम से शोलों की ......
वाह .... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने
अप्रतिम भावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंख़्यालों को अन्दर तक भेदते मौसमों के कंटक।
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