"चाँदी" ये कहने को तो एक धातु है ,पर ये शुभ्रता , शुचिता , शीतलता , धवलता और निष्पाप होने के प्रतीक रूप में अधिक मान्य है । ये अकेली ऐसी धातु है जिसको हम निश्चिन्तमना हो पाँव में भी पाजेब और बिछुवे के रूप में पहन लेते हैं , अन्य किसी भी धातु के साथ ऐसा नहीं है । स्वर्ण को लक्ष्मीजी का रूप मान पाजेब जैसे आभूषणों में प्रयोग नहीं किया जाता है । धार्मिक मान्यताओं के अतिरिक्त ,इसकी कीमत का कम होना इस को आमजन के लिए सहज सुलभ कर जाता है ।
किसी के जीवन को अथवा उसके कृतित्व को ,अगर विशिष्ट परिधि में उत्सवित करना हो ,तब भी सबसे पहले हम उसकी रजत - जयंती मनाते हैं । जीवन की दिशा को निर्धारित करने में सबसे अधिक महत्व रखने वाला संस्कार , अर्थात विवाह उसकी भी वार्षिक वर्षगाँठ हम न्यूनाधिक रूप में मनाते हैं परन्तु जैसे ही चौबीस वर्ष हो जाते हैं एक विशद आयोजन की मांग सुनायी पड़ने लगती है अर्थात विवाह की रजत - जयंती की !
अक्सर मैं सोचती थी कि इस पच्चीसवीं वर्षगाँठ में ऐसा विशेष क्यों होना चाहिए .... इसको इतने विशद रूप में मनाने की अपेक्षा क्यों की जाती है | लगता यही था कि जैसी चौबीसवीं वर्षगाँठ वैसी ही तो पच्चीसवीं भी होती है । इसमें कुछ अलग होना समझ नहीं आता था । पर अब लगता है कि नहीं अन्तर तो होता है । विवाह के समय एकदम अलग और अनजाना सा परिवार और परिवेश मिलता है । उसमें भी एकदम अनजाने का जीवन का पर्याय बन जाना । जैसे - जैसे समय बीतता जाता है जीवन में नित नये दायित्व सामने आते हैं और हम उनका समाधान खीजते हुए अपने से जुड़े हुए नितांत निजी लम्हों की अनदेखी भी कर जाते हैं । पच्चीसवाँ वर्ष आते - आते जीवन एक संतुलन पा लेता हैं और एक सीमा तक कुछ दायित्व भी पूर्ण होने की राह पर आ जाते हैं ।अपने कार्यस्थल पर और व्यक्तिगत जीवन में भी अपनी पहचान बन चुकी होती है । बच्चों की भी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी हो चुकी होती है और वो भी अपने जीवन को एक सार्थक दिशा देने की स्थिति में आ चुके होते हैं । एक अभिभावक के रूप में एक सुकून मिल जाता है । अब जीवन के हर पल को हम अपनी रूचि के अनुसार जी सकतें हैं । बस ,शायद इसीलिये विवाह की रजत जयंती जीवन में आने वाले सुखद लम्हों को जी भर के जी लेने की एक सुखद शुरुआत है । अब ऐसे लम्हे होंगे जो एकदम हमारी रूचि और विचारों के जैसे होंगे ।
आप सब भी सोच रहे होंगे कि इतने अंतराल के बाद लिखा और वो भी विवाह की रजत - जयंती के औचित्य के बारे में बातें कर रही हूँ । वैसे इसमें रहस्य जैसा कुछ है नहीं , पर चलिये हम बता भी देते हैं । दरअसल हमने अभी-अभी अर्थात तीन फरवरी को हमारे विवाह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ उत्स्वित की है ....:)
-निवेदिता