गुरुवार, 10 मार्च 2011

"सोने की लंका जली क्यों ?"

          'लंका' ये नाम तो कुछ जाना पहचाना सा लगता  है | सच  बचपन  से सुनते चले आ रहे हैं की जब लंका जल गयी तब हर चीज़ -चाहे वो सजीव हो या निर्जीव -जल ही जायेगी | अब ऐसे  चौंकती प्रतिक्रया  मत  दीजिये |भाई 
लंका जलने का कारण हम बाद में सोचते हैं,लेकिन पहले ये सोच लें किएक 
बार जल चुकी लंका को हम कितनी बार जलायेंगे |लंका में रहने वालों नेउस को जलाने की शुरुआत की अपने कर्मों से  बाकी का काम तो वीर हनुमाना " 
जय हो आपकी ,कुछ भी बाकी न छोड़ा ! हम तो बस  अब  तक लकीर  पीट रहे  हैं  और  समाज  में  व्याप्त  रावण-बंधुओं को  अनदेखा  करने  की  रस्म बखूबी निभा रहे हैं और उन से ही रावण को जलवाते हैं |
          लंका किसने जलाई ,कैसे जली जैसे सवालों को छोड़ ही देतें हैं | आज तो हम  भी  संकीर्ण  हो कर  सोचेंगे - ऐसा हुआ क्यों ? लंका का परिचय देते
हुए हमेशा कहा जाता है -सोने की लंका | ये शब्द "सोना "है क्या ? ये स्वर्ण है अथवा सोना अर्थात नींद | अगर ये स्वर्ण की वजह से जलती तो इन्द्रालय 
अथवा कुबेर का महल पहले जलना चाहिए था | 
           मुझे तो लगता है लंका के जलने  की  जांच अगर  किसी  एजेंसी  से करवाएं तो इसका कारण नींद ही पता चलेगी | ये  नींद सिर्फ  पलकों को बंद
करने से आने वाली नींद नहीं है | ये तो विवेक की पलकें बंद करने वाली नींद 
है ! ये आत्मा को सुला देने वाली नींद है ! संबंधों की तरफ से आंखें  बंद  कर
रखने वाली नींद है !समाज को भिन्न वर्गों में बांट  कर खुद को  श्रेष्ठ  मानने
वाली नींद है !अगर रावण ने शूर्पनखा के पति विद्युज्जिंह का वध नहीं किया
होता तो शूर्पनखा अविवेकी  न होती  और  रावण भी  कभी  उसे  अनियंत्रित नहीं छोड़ता | संबंधों  को  न  समझने के  फलस्वरूप  ही अपनी  राजनीतिक सत्ता  बनाए रखने की लिप्सा में कुम्भकर्ण को मद्य-व्यसनी न बनाता | प्रजा 
और शासक-वर्ग में इतना अंतर बना कर उनका शोषण न करता | 
         अब जब भी सोने की लंका के जलने की  बात करें , तब  उसके  कारण   
इस अविवेकी नींद को याद कर जाग जाइयेगा|समाज में व्याप्त कई बुराइयां
हमारी आत्मा के सो जाने का ही परिणाम है | विज्ञापन की  भाषा  में ' जागो  
बन्दों जागो ' .........

8 टिप्‍पणियां:

  1. "...समाज में व्याप्त कई बुराइयां हमारी आत्मा के सो जाने का ही परिणाम है |"

    आपके इस कथन से पूर्णतः सहमत.

    सादर

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  2. Kumbhkaran ke padosi hai , Etani jaldi kahan jagne wale hai?
    behtreen lekh
    shubhkamnaye

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  3. वाह..
    क्या खूब कटाक्ष किया है...

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  4. अगर रावण ने शूर्पनखा के पति विद्युज्जिंह का वध नहीं किया
    होता तो शूर्पनखा अविवेकी न होती और रावण भी कभी उसे अनियंत्रित नहीं छोड़ता |

    यह जानकारी पहली बार पढ़ी ...आभार ...

    अच्छा कटाक्ष किया है विवेक और अविवेक पर

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  5. जब विवेक काम नहीं करता उसी को नींद कहते हैं..और ऐसी स्थिति में उस स्थान का भौतिक तौर भी स्थान जले हुए सामान की तरह ही माना जाय....
    व्याख्या अच्छी लगी

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  6. संगीता जी ,वर्षा जी ,यशवन्त जी ,दीपक जी ,राजेश जी-आप सब
    की सराहना के लिये आभारी हूं ।
    संगीता जी ,शूर्पनखा से सम्बन्धित इस घटना के बारे में कई जगह
    पढा है । पहले शूर्पनखा का नाम "चन्द्रनखा" था ,बाद में उसकी
    गलत आदतों की वजह से ही उस का नाम बदल दिया गया था ।
    सबसे आसानी से मिलने वाली किताब आचार्य चतुरसेन जी की
    "वयं-रक्षां:" है । धन्यवाद ।

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  7. मैं तो अपनी सोती रहने वाली लंका को कब से जलाने का प्रयास कर रहा हूँ, पूरी सील गयी है।

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