"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010
काश......
काश मन हमारा स्लेट होता ,
हमारे पास एक उजला लम्हा होता ,
उनका नकारना हम स्वीकार पाते ,
उलझनों पर सफ़ेदी फ़ेर पाते ,
उनकी अनदेखी को न देख पाते ,
उस न को अपना बना पाते ,
काश कुछ वो समझ पाते ,
काश कुछ हम समझा पाते ......
"काश मन हमारा स्लेट होता,
जवाब देंहटाएंऔर लिखने को एक उजला लम्हा होता"
क्या बात है ,बहुत ही अर्थपूर्ण रचना। बधाई।
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
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