झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

रविवार, 23 जनवरी 2022

सिरहाने धरी हथेली ...

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सिरहाने धरी हथेली की  लकीरों में छुप के बैठे हुए ! पूरनम रेशों की तासीर में कुछ अल्फ़ाज़ थे गुंथे हुए ! कहीं कुछ दम है घुटता सा जैसे हो कोई सा...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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