झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2019

लघुकथा :उलझे तार

›
लघुकथा :उलझे तार मैसेज की आवाज़ पर फोन उठा लिया उसने । देखा तो खुद को तारणहार बतानेवाली का मैसेज चमक रहा था ,"देखिये ये चित्र खास आप ...
1 टिप्पणी:
‹
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
निवेदिता श्रीवास्तव
मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
Blogger द्वारा संचालित.