झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

सोमवार, 22 अप्रैल 2019

लघुकथा : परिवर्तन

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लघुकथा : परिवर्तन "अरे ... ये क्या बहू तुम चाय पी रही हो ... और तुमने ये बिंदी ,चूड़ी उतार रखी है । पता नहीं ये आजकल की लड़कियाँ अपने ...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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