झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

गुरुवार, 11 जनवरी 2018

वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन ......

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वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन  ...... ये वैसे तो एक गीत की पंक्ति है ,पर मैं कई दिनों से यही सोच रही थी कि सच में ये सम्भव है भी...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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