झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

सोमवार, 25 दिसंबर 2017

एक नन्हा सा कतरा ......

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हाँ ! हूँ मैं एक नन्हा सा कतरा एक बहुत ही नन्ही सी बूँद  ये दरिया मेरा क्या कर पायेगा मैं बच गयी तब भी बूँद रहूंगी पर हाँ ! मिट गयी...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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