झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

26 / 04 / 2016

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सच कहा तुमने बहुत सोचती हूँ पर ये भी कभी  सोच कर देखना सोचती हूँ इतना तभी तो अभी तक धड़कनों ने याद रखा है धड़कना और हाँ ! याद रखना ये जो ...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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