झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

बुधवार, 12 अगस्त 2015

मेरी खामोश सी खामोशी .....

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सोचती हूँ मौन रहूँ  शायद मेरे शब्दों से  कहीं अधिक बोलती है  मेरी खामोश सी खामोशी  ये सब  शायद कुछ ऐसा ही है  जैसे गुलाब की सुगंध  ...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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