झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

शनिवार, 27 जून 2015

बहाने कुछ न लिखने के …

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लगता है शीर्षक ही गलत चुन लिया  .... क्यों  … अरे भई वही हाल हुआ "प्रथम ग्रासे मक्षिका पात " .... बस शीर्षक लिख कर आगे बढ़ने को तत...
7 टिप्‍पणियां:
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निवेदिता श्रीवास्तव
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