झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

रविवार, 31 मई 2015

गंगासागर बना दिया …

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चाहतें तो सभी की  बहुत सी होती हैं  मेरी भी है  पर बहुत ही  छोटी छोटी सी   ख़ता की है  तुम्हारी पड़ी हुई  एक नामालूम सी निगाह ने ...
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