झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

तुम ......

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मेरी हँसी के  अवगुंठन में  छुपी मेरी सिसकी  कैसे देख लेते हो  मेरे तीखे बोलों में  छिपा मेरे मन के  दुरूह कोनों में बसा  ...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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