झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

शीर्ष विहीन

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सोचती हूँ  आज  उन शब्दों को  स्वर दे दूँ  जो यूँ ही  मौन हो  दम तोड़ गए और   अजनबी से  दफ़न हो  सज रहे है  एक  शोख मज़ार सरीखे    ...
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