झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

बुधवार, 24 दिसंबर 2014

शुक्रिया तुम्हारा

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शुक्रिया तुम्हारा  तुमने तोडे मेरे सपने  और मैं समझ गयी  टूटे सपने भी जीवंत होते हैं  देख कर अनदेखी करती  ये अधमुंदी सी आंखे  ...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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