झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

गुरुवार, 21 अगस्त 2014

ऐसा भी होता है ……

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खामोशियों से सराबोर ये शाम  दबी सी आहटों के शब्द तलाशती  डूबते सूरज की रौशन रौशनी को  कतरा दर कतरा अपने दामन में  चाँद - तारों सा टा...
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