झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

बुधवार, 23 जुलाई 2014

मेरी आँखें सोना चाहती हैं .......

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वो दूर क्षितिज पर  एक उजला साया सा दिखा  अचंभित है मन बावरा  वो दूर उड़ता उजला लम्हा  रेशा - रेशा बादल है  या कहीं उठती - गिरती  सम...
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