झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

गीता का ज्ञान ,पर किसके लिये .....

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जब भी धर्म - अधर्म , नीति - अनीति , न्याय - अन्याय अथवा किसी निर्बल पर किसी निर्द्वंद ,निरंकुश के द्वारा किये गए अनाचार के परिण...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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