झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

ख़्वाब .....

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ख़्वाब .... कभी मुंदी और कभी खुली पलकों से भी सांस - सांस जिए जाते हैं ख़्वाब ..... कभी साँसों में और कभी दिलों में...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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