झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

सोमवार, 22 जुलाई 2013

माला तो हमेशा आपके गले में सजती थी ये फिर ऐसा क्यों …………

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  वो  २९ जून का ही दिन था जब अचानक ही मेरे देवर "आशू" का फोन आया था अमित जी के पास " भाभी को लोहिया में  एडमिट कर दिया गया ह...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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