झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

शनिवार, 29 जून 2013

इखरे - बिखरे - निखरे आखर ( २ )

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मासूम से लम्हों को ,लगता है छोटे - छोटे नगण्य से जीवों पर भी दुलार आ ही जाता है ।  वो नन्ही फ़ाख्ता सबकी कुशल चाहते - चाहते बस यूँ ही ...
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