झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

शुक्रवार, 17 मई 2013

तुम्हारी परछाईं ....

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सब आजमाते है जैसे मैं ही हूँ तुम्हारी परछाईं सच कहूँ नहीं बनना मुझे तुम्हारी परछाईं कभी कहीं आ गयी  ज़िन्दगी में तपिश तुमसे दूर...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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