झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

सोमवार, 31 दिसंबर 2012

कोमा में जा चुकी मन:स्थिति .....

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जब भी कहीं कुछ आत्मा को छलता हुआ सा घटित होता है ,दिल - दिमाग दोनों ही कोमा में चले जाते हैं । न तो कुछ पढने का मन करता है और न ही लिखने...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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