झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

सोमवार, 27 अगस्त 2012

मैं डर जाती हूँ .... क्यों ?

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जब भी गूँजी कहीं गोली की आवाज़  या बिखरी कहीं किसी दंगे की बात  बेसबब ये बाँहें फ़ैल गयी  चाहत उभरी इस पूरे जहान को  अपने विश्वा...
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