झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

सात सुरों की सरगम बन .....

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इन्द्रधनुषी से रंगों संग  हिंडोले की मैं पेंग बन जाऊँ !  नाज़ुक से ख़्वाब सजा  मीठी सपनीली नींद बुलांऊ ! कांच की खनक ला य...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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