झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

शनिवार, 29 अक्टूबर 2011

काँच के रिश्ते ?

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नहीं पता ये काँच के रिश्ते हैं  या रिश्तों में दरकता है काँच  निर्मल काँच ही है चमकता रेत का एक कण भी कहीं  बहुत गहरे छोड़...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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