झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

रविवार, 29 मई 2011

सूर्य पुत्र या सूत पुत्र "कर्ण"

›
आज  सूर्य की , धरा पर झांकने को तत्पर, किरणों से  मैं सूर्यपुत्र कुछ कहना  चाहता हूँ  मैंने तो कभी न पाली किसी के प्रति  अपने मन में कोई दु...
23 टिप्‍पणियां:
‹
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
निवेदिता श्रीवास्तव
मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
Blogger द्वारा संचालित.