झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

हां आज ही कर दूंगी ..........

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ओ मेरे ? व्यथित मन ! अब बस , आज ...... हाँ ! आज ही  कर दूंगी  तेरी विदाई .......... यादों से भी , वादों से भी ... अश्रुओं की  वेणी बना...
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