झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

गुरुवार, 31 मार्च 2011

गुमसुम खामोशी ........

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इस गुमसुम खामोशी में  ख्यालों की आंधियां लाते अनसुलझे सवालों में  धूपिल छाँव तलाशते कैसे हैं ये जज्बात ! कभी पानी सा सरल  कभी पानी सा कठोर, ...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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