झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

" युधिष्ठिर - न्याय "

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         सबके उचित-अनुचित का आकलन कर के न्याय करते-करते आज अनायास ही मेरी अंत:चेतना मुझसे प्रश्न करने लगी -क्या मेरे द्वारा किया जाने वाला न...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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