गुरुवार, 21 अगस्त 2014

ऐसा भी होता है ……


खामोशियों से सराबोर ये शाम 
दबी सी आहटों के शब्द तलाशती 
डूबते सूरज की रौशन रौशनी को 
कतरा दर कतरा अपने दामन में 
चाँद - तारों सा टाँक सजा लिया 

थके से कदमों में आ गयी 
एक नयी उमंग की चमक 
खिलखिलाहट में दिख गयी है 
शायद अपने घर की पहचान 

सुबह ने शायद अपनी पलकें खोल 
उदासी की बिखरी किरचें समेट लीं 
मासूम से कन्धों ने थाम लिया है
इन्द्रधनुषी सपनों की सौगात  ……… निवेदिता 
                                   

रविवार, 10 अगस्त 2014

सबसे अलग हो तुम ......

सबसे अलग हो तुम 
जानते हो क्यों 
सब देखते हैं 
लबों पर थिरकती हँसीं 
स्वर में बोलते अट्टहास 
पर तुम ....
तुम तो देख लेते हो 
इन सबसे परे 
मेरी आँखों में तैरती नमी ....... निवेदिता