नवरात्रि का पर्व ,सबके लिए सुख और समृद्धि की वर्षा करता आता है | हमारे परिवार को तो माँ जगदम्बा ने अनमोल वरदान दिया है | शारदीय नवरात्रि की द्वितीया को ,हमारे छोटे बेटे अभिषेक का जन्मदिन है :)
जब भी कभी एक माँ अपने बच्चे के बारे में कुछ लिखती है ,तो वो लिखने से कहीं ज्यादा महसूस कर रही होती है | अनगिनत पल यादों में तैर जाते हैं | आज भी अभिषेक की पहली जिद की याद स्मित ला देती है | अभिषेक बहुत छोटा था तब की बात है .... अपने बड़े भाई अनिमेष को स्कूल जाते देख खुद भी स्कूल जाने की बातें करता रहता था | एक दिन मैं अनिमेष को स्कूल के लिए तैयार कर रही थी ,तभी अचानक से पूरी तरह भीगा हुआ अभिषेक सामने आ गया और बोला " मै नहा चुका अब मुझे भी स्कूल भेजो "..... समझाने पर भी नहीं माना और स्कूल चला भी गया |दोपहर में जब दोनों भाई वापस आये तो अभिषेक के पास बातों का जैसे एक नया ख़जाना मिल गया था | उसने स्कूल जाने में कभी भी परेशान नहीं किया | ये उसकी पहली और अभी तक की आख़िरी जिद है !
अभिषेक को ,जब से अक्षरों की पहचान हुई ,उसको पढ़ने का नशा हो गया था | किसी भी उपलब्धि पर ,उसकी फरमाइश सिर्फ और सिर्फ किताबों की होती थी | आज भी मुझे याद है ,जब हैरी पॉटर की किताबें आती थी उसको स्कूल जाने के पहले ही चाहिए होतीं थी | बेशक पढ़ता तो वो स्कूल से आ कर अपनी पढ़ाई पूरी कर के ही था ! हमारे घर के पास की 'युनिवर्सल' पर सब उसको पहचानते थे और उसकी सारी फरमाइशें पूरी करते थे | बाद में यही हाल 'लैंडमार्क' में भी हो गया था | आजकल आई.आई.टी.कानपुर जाने के बाद उसको अपना ये शौक पूरा करने के लिए थोड़ी सी समय की कमी हो गयी है | जब भी घर आता है, इस बात का अफ़सोस उसकी बातों में झलक जाता है | अभी उसके पास किताबों का बहुत अच्छा संग्रह हो गया है | अभिषेक के इस शौक पर हमें संतुष्टि मिलती है | उसकी भाषा पर उसके इस शौक का असर दिखता है | मेरे जन्मदिन पर वो हमेशा खुद कार्ड बनाता था और बहुत प्यारी बातें भी लिखता था ...... मेरे संग्रह में वो सभी कार्ड सुरक्षित हैं :)
अनिमेष के आई.आई.टी. कानपुर जाने के बाद घर पर सिर्फ हम दोनों ही रह गये थे ,बच्चों के पिताश्री का स्थानान्तरण लखनऊ से बाहर हो गया था | उस समय हमारे परिवार के इस सबसे छोटे सदस्य ने मेरे लिए अभिभावक वाली संवेदनशीलता दिखाई थी | मैं सोचती थी कि वो घर से बाहर कैसे रहेगा और वो सोचता था कि उसके बिना मैं कैसे रहूँगी ! हर दिन एक नई सोच के साथ आता था कि मैं कुछ ऐसा करने लगूँ कि अकेलापन न महसूस करूँ | अभी भी हॉस्टल में तकरीबन डेढ़ साल रह चुकने के बाद भी मेरे आवाज़ की शिकन को भाँप जाता है | अभी भी उसकी बातें ऐसी होतीं हैं कि वो एक मासूम सा छोटा बच्चा ही लगता है |
कल २८ सितम्बर को आंग्ल तिथि से उसका जन्मदिन था और आज नवरात्रि की द्वितीया को हिन्दी तिथि के अनुसार जन्मदिन है | आज और हर पल बस यही दुआ करती हूँ कि "अभिषेक में हर पल नया करने की चाह बनी रहे और जो मिले उससे संतुष्टि भी मिले "........ अनन्त मंगलकामनाएं और शुभेच्छाएं :)