लघुकथा : प्रयोपवेशन
सामने अग्नि का विशाल सागर निर्बन्ध हो सब कुछ निगल जाने को जैसे उमड़ा चला आ रहा हो । अग्नि की दहक इतनी दूर से भी अपनी तीक्ष्णता का पूरा अनुभव करा रही है ।
पसीने की बहती अनवरत धार को पोंछते हुए विदुर जैसा स्थितिप्रज्ञ व्यक्ति भी चंचल हो उठा ,"भैया - भाभी अब भी समय है ,चलिये यहाँ से निकल चलते हैं ।कुछ ही देर में अग्नि इतना विकराल रूप ले लेगी कि फिर हम चाह कर भी नहीं निकल पाएंगे ।"
हताश से धृतराष्ट्र बोल पड़े ,"नहीं अनुज अब मैं थक गया हूँ। मेरे अंदर का दावानल इतना विकराल हो गया है कि इस दावानल की दाहकता कुछ अनुभव ही नहीं हो रही है । अगर तुम जाना चाहो तो निःसंकोच चले जाओ ,साथ में कुंती को भी ले जाओ ।"
विदुर अपनी स्थितिप्रज्ञता से उबर चुके थे ,"सही कहा भैया आपने । आपके अंतर्मन की दाहकता ने आपको विवेकशून्य सा कर दिया है । आप ने तो अपनी संतति की गलतियों को अनदेखा कर के हस्तिनापुर में ही प्रयोपवेशन करता सा जीवन जीया है । आप निराशा के अंधकार में ही जीते रहे और अंत भी वैसा ही चाहते हैं ।पर मैं ... हाँ भैया मैंने पूरा जीवन सकारात्मक सृजन में ही लगाया है । मैं अब भी हार नहीं मान सकता । मैं जा रहा हूँ नव सृष्टि के सृजन के लिये ।"
... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"
सामने अग्नि का विशाल सागर निर्बन्ध हो सब कुछ निगल जाने को जैसे उमड़ा चला आ रहा हो । अग्नि की दहक इतनी दूर से भी अपनी तीक्ष्णता का पूरा अनुभव करा रही है ।
पसीने की बहती अनवरत धार को पोंछते हुए विदुर जैसा स्थितिप्रज्ञ व्यक्ति भी चंचल हो उठा ,"भैया - भाभी अब भी समय है ,चलिये यहाँ से निकल चलते हैं ।कुछ ही देर में अग्नि इतना विकराल रूप ले लेगी कि फिर हम चाह कर भी नहीं निकल पाएंगे ।"
हताश से धृतराष्ट्र बोल पड़े ,"नहीं अनुज अब मैं थक गया हूँ। मेरे अंदर का दावानल इतना विकराल हो गया है कि इस दावानल की दाहकता कुछ अनुभव ही नहीं हो रही है । अगर तुम जाना चाहो तो निःसंकोच चले जाओ ,साथ में कुंती को भी ले जाओ ।"
विदुर अपनी स्थितिप्रज्ञता से उबर चुके थे ,"सही कहा भैया आपने । आपके अंतर्मन की दाहकता ने आपको विवेकशून्य सा कर दिया है । आप ने तो अपनी संतति की गलतियों को अनदेखा कर के हस्तिनापुर में ही प्रयोपवेशन करता सा जीवन जीया है । आप निराशा के अंधकार में ही जीते रहे और अंत भी वैसा ही चाहते हैं ।पर मैं ... हाँ भैया मैंने पूरा जीवन सकारात्मक सृजन में ही लगाया है । मैं अब भी हार नहीं मान सकता । मैं जा रहा हूँ नव सृष्टि के सृजन के लिये ।"
... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"
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