शनिवार, 22 सितंबर 2012

मुक्तक

                     १

धरती का पानी ,
धरती पर ही वापस आना है 
पर हाँ ! उसको भी पहले वाष्प 
फिर घटा ,तब कहीं वर्षा बन 
बरस धरा में मिल जाना है ...

                     २ 

हथेलियों में जब 
मेहंदी सजी रहती है 
हाथों की लकीरों में 
ये कैसा अनजानापन 
बस जाता है !

                    ३ 

सच ! 
सच में इतना कड़वा क्यों होता है 
जब भी कभी सच बोलो 
आँखों में चुभते काँटे और 
जुबान पर ताले क्यों लग जाते है ?
 
                  ४ 

आसमान के सियाह गिलाफ़ पर 
चाहा तारों की झिलमिल छाँव 
बेआस सी ही थी अंधियारी रात 
बस किरन टँकी इक चुनर लहराई 
इन्द्रधनुष के रंग झूम के छम से छा गये 
तारों की पूरी कायनात ही दामन सजा गयी ....
                                                     -निवेदिता    

26 टिप्‍पणियां:

  1. इन्द्रधनुष के रंग झूम के छम से छा गये
    तारों की पूरी कायनात ही दामन सजा गयी ....

    bahut sundar abhivyakti .
    shubhkamnayen .

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  2. अपने को ही तपा कर अपने को ही सींचना तो हमने भी सीख रखा है।

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  3. बेहतरीन क्षणिकाएं |ब्लॉग पर आगमन हेतु आभार |

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  4. बेहतरीन प्रस्तुति। तारों की पूरी क़ायनात ही दामन सजा गई .. वाह!

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  5. बहुत ही बेहतरीन क्षणिकाएं
    बहुत सुन्दर
    शानदार..
    :-)
    ;;;;;;;;;;;;;;;;

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  6. हथेलियों में जब
    मेहंदी सजी रहती है
    हाथों की लकीरों में
    ये कैसा अनजानापन
    बस जाता है !
    हृदयस्पर्शी...
    :-)

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  7. उत्तर

    1. इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें.

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  8. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 24-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1012 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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    उत्तर
    1. गाफ़िल जी ,चर्चा-मंच में शामिल करने के लिए शुक्रिया ...-:)

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  9. बहुत सुंदर मुक्तक. थोड़े से शब्दों में गहन भाव भरे हें.

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  10. यशवंत ,नई पुरानी हलचल में शामिल करने के लिए शुक्रिया ...-:)

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  11. धरा में मिल जाना है , आत्मा के परमात्मा में लीं होने जैसा ही आध्यात्मिक भाव !
    प्रभावी क्षणिकाएं !

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  12. ज़वाब नहीं मुक्तकों का .एक से बढ़के एक .अर्थ और व्यंजना दोनों से संसिक्त .

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  13. सच !
    सच में इतना कड़वा क्यों होता है
    जब भी कभी सच बोलो
    आँखों में चुभते काँटे और
    जुबान पर ताले क्यों लग जाते है ?

    बहुत ही सुन्दर.....बिलकू;ल सही कहा आपने सहमत हूँ इससे ।

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  14. पानी, मेहंदी,कटु सत्य और नभ ,क्षणिकाओं में बहुत खूब अभिव्यक्त हुए हैं.

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  15. आसमान के सियाह गिलाफ़ पर
    चाहा तारों की झिलमिल छाँव
    बेआस सी ही थी अंधियारी रात
    बस किरन टँकी इक चुनर लहराई
    इन्द्रधनुष के रंग झूम के छम से छा गये
    तारों की पूरी कायनात ही दामन सजा गयी सबसे खूबसूरत अंदाज़-ए-ब्यान यही लगा मुझे तो अनुपम भाव संयोजन

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  16. बहुत सुन्दर मुक्तक निवेदिता....
    सभी लाजवाब...
    जाने हम कैसे पढ़ नहीं पाए पहले...

    सस्नेह
    अनु

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  17. shabdo ko ku6 es trah sajaya he aap ne ....ki wo har dil ki aawaj ban gye anek anek dhnywaad

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