tag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post4657582073336785980..comments2024-01-07T14:43:29.542+05:30Comments on झरोख़ा: द्रोण का शिष्यत्व -- एक अभिशाप निवेदिता श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/17624652603897289696noreply@blogger.comBlogger31125tag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-28172928423603097302015-12-13T06:06:58.018+05:302015-12-13T06:06:58.018+05:30शिष्य तो ऐसा चाहिये गुरु को गुरु को सब कुछ देय,
इस...शिष्य तो ऐसा चाहिये गुरु को गुरु को सब कुछ देय,<br />इस उक्ति पर द्रोणाचार्य जी के शिष्य तो खरे उतरते हैं पर,<br />गुरु तो ऐसा चाहिये शिष्य से कछु नही लेय,<br />इस पर द्रोणाचार्य जी पर कहाँ ठहरते हैं यह आपका लेख बखूबी कह डालता है।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-8917854578949816432015-12-13T06:01:44.723+05:302015-12-13T06:01:44.723+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-80516383061262263052015-07-31T10:19:56.591+05:302015-07-31T10:19:56.591+05:30काफी पुरानी बात है, हम उस समय पैदा नहीं हुये थे......काफी पुरानी बात है, हम उस समय पैदा नहीं हुये थे.... क्या कहें... <br /><br />हम तो बस एकलव्य को जानते हैं.... गलत था एकलव्य... Shekhar Sumanhttps://www.blogger.com/profile/02651758973102120332noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-87640299245424115792015-07-22T22:11:13.910+05:302015-07-22T22:11:13.910+05:30गुरुकर्म जब तक राजनीति से प्रभावित रहेगा तब तक गुर...गुरुकर्म जब तक राजनीति से प्रभावित रहेगा तब तक गुरुओं से निष्पक्षता की आस करना व्यर्थ है।<br />द्रोण से लेकर आज तक के गुरु राजनीतिक प्रपंचों में संलिप्त दिखाई देते हैं।महेन्द्र वर्माhttps://www.blogger.com/profile/03223817246093814433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-60484744344408434762015-07-22T12:20:05.439+05:302015-07-22T12:20:05.439+05:30सर ,
गुरु की निंदा नहीं की है बस व्यर्थ महिमामंडित...सर ,<br />गुरु की निंदा नहीं की है बस व्यर्थ महिमामंडित नही कर पाती … शायद मेरे गुरुजन ने मुझे इसी साँचे में ढाला है ..... धन्यवाद !निवेदिता श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/17624652603897289696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-57469685686985880352015-07-22T12:17:46.180+05:302015-07-22T12:17:46.180+05:30भइया ,
आपकी सोच के प्रति पूर्ण सम्मान रखते हुए मैं...भइया ,<br />आपकी सोच के प्रति पूर्ण सम्मान रखते हुए मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगी कि किसी भी ऐसे व्यक्तित्व के विषय में कुछ भी लिखना ,बिना पढ़े उपहास ही बन जाता है ,अपना भी और उस चरित्र का भी और ये तो आप भी मानेंगे कि ऐसा दुस्साहस मैं तो नहीं कर सकती कभी भी। ..... तो ये तो नहीं कहूँगी कि कुछ तथ्य नहीं खोजे बस मन की तरंग में ये सब लिख डाला .... तो जो भी मैंने लिखा है उसके प्रत्येक अक्षरांश में मेरी ही सोच और अध्धयन है .... <br />और हम तो न ही I I T वाले है न ही I I N वाले ,आप की ये बहन तो सिर्फ प्राइमरी स्कुल वाली ही है :)<br />वैसे भी कृष्ण किसी को छलिया लगते हैं तो किसी को रसिया और वहीं किसी को मनबसिया .... यही बात द्रोण के संदर्भ में भी है .... सादर !निवेदिता श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/17624652603897289696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-73996115473282149182015-07-21T16:36:15.935+05:302015-07-21T16:36:15.935+05:30आपकी कलम में बहुत ताकत है... गुरुओं की इतनी निंदा ...आपकी कलम में बहुत ताकत है... गुरुओं की इतनी निंदा कर सकी.Madabhushi Rangraj Iyengarhttps://www.blogger.com/profile/13810087916830518489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-64299557213801451302015-07-21T16:34:46.049+05:302015-07-21T16:34:46.049+05:30ज्ञानवर्धक तर्क. सत्यता का मुझे इतना क्षान नहीं है...ज्ञानवर्धक तर्क. सत्यता का मुझे इतना क्षान नहीं है कि कुछ कहूँ.Madabhushi Rangraj Iyengarhttps://www.blogger.com/profile/13810087916830518489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-1439359738349348362015-07-21T16:31:11.203+05:302015-07-21T16:31:11.203+05:30महाभारत में ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं. इसीलिए म...महाभारत में ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं. इसीलिए महाभारत को प्रबंधन का सबसे पुराना और विस्तृत ग्रंथ कहा गया है. गुरु द्रोण जैसे ही कृष्ण ने भी सेना से कौरवों का और मन से पाँडवों का साथ दिया. जयद्रथ वध, भीष्म पर निशाना , अश्वत्थामा का शिकार ऐसे कई वाकए हैं जहाँ कृष्ण की राजनीति या कहें रण नीति देखी जा सकती है जो न्यायोतित नहीं लगती. जहाँ तक एकलव्य की बात है आज उसकी गुरु भक्ति पर हम सब श्रद्धेय हैं - केवल इसीलिए कि उसने अपने कल्पित गुरु के एक आदेश पर अँगूठा समर्पित कर दिया जिसकी वजह से उसकी सारी शिक्षा धरी की धरी रह गई फिर भी उसने परवाह नहीं की न ही शिष्य धर्म निभाने से परहेज ही किया.Madabhushi Rangraj Iyengarhttps://www.blogger.com/profile/13810087916830518489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-8246471510271038632015-07-20T20:42:51.920+05:302015-07-20T20:42:51.920+05:30इस आलेख में एक सामन्य व्यक्ति के मन में उपजी जिज्ञ...इस आलेख में एक सामन्य व्यक्ति के मन में उपजी जिज्ञासा और उससे बनी अवधारणा का बड़ी सहजता से वर्णन किया गया है. लेकिन ऐतिहासिक या पौराणिक पृष्ठभूमि पर लिखते समय एक गहन शोध की आवश्यकता होती है. IIN जैसे संस्थानों से पढाई करके कोई IIT की डिग्री नहीं हासिल कर सकता. द्रोणाचार्य ने तो केवल अंगूठा माँगा था (जिसके बिना भी शरसन्धान सम्भव होता है) यदि वे चाहते तो एकलव्य की तर्जनी या मध्यमा भी माँग सकते थे. वैसे ही कई तथ्य और हैं जिनकी दुबारा पड़ताल करने की आवश्यकता है. <br />फिर भी ऐसे गहन विषय पर लिखने का साहस करना ही बहुत बड़ी बात है. मेरी ओर से बधाई!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-74143530201347527852015-07-20T10:57:34.057+05:302015-07-20T10:57:34.057+05:30एक दृष्टिकोण यह भी है....द्रोणाचार्य ने एकलव्य से ...एक दृष्टिकोण यह भी है....द्रोणाचार्य ने एकलव्य से अगूँठा मांगकर उसे अमर कर दिया..स्वयं पर दोष लेकर उन्होंने गुरु भक्ति में एकलव्य को प्रतिष्ठित किया..वरना उसे आज कौन जानता..Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-63079711835191776972015-07-20T08:22:37.129+05:302015-07-20T08:22:37.129+05:30http://www.archerysupplier.com/wp-content/uploads/...http://www.archerysupplier.com/wp-content/uploads/Mediterranean-draw-release.jpgSmart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-57169892038963295092015-07-19T22:03:18.454+05:302015-07-19T22:03:18.454+05:30ज़रा सा ध्यान दें तो पाएंगे कि किसी गुरुकुल की जानक...ज़रा सा ध्यान दें तो पाएंगे कि किसी गुरुकुल की जानकारी और अनुमति के बिना अपने को वहाँ का छात्र कहने की बात वैसी ही है जैसे दिल्ली के ला मिनिस्टर तोमर किसी भी यूनिवर्सिटी की जाली डिग्री छापकर अपने को वहाँ का विद्यार्थी घोषित कर दें। आजकल<br />कर्ण के पक्षधर खूब मिल जाते हैं लेकिन महाभारत के किसी पात्र के साथ असल अन्याय हुआ है तो वे द्रोणाचार्य ही हैं। जिस देशकाल में चक्र से किसी का गला काट देने के लिए सौ गालियां पर्याप्त होती थीं वहाँ भी केवल अंगूठा मांगना और वह अंगूठा भी काटा नहीं गया है। अंगूठे के बिना तीरंदाज़ी द्रोणाचार्य की विशेषता थी जो आज भी मेडिटरेनियन ड्रा के नाम से प्रसिद्ध है। अपने समर्पित छात्र एकलव्य को पल भर के आकस्मिक मुलाक़ात में ही अपना अद्वितीय गुप्त सूत्र दे जाना द्रोण जैसे महात्मा की विशेषता है। द्रुपद द्वारा उनके साथ छल किये जाने के बावजूद उसका राज्य जीतकर वापस दे देना उनकी विशालहृदयता का द्योतक है। और भीष्म का आमंत्रण भी उन्होने यूं ही सीकार नहीं किया। दूध-घी की नदियों के देश में उनके बेटे को पानी में आटा मिलाकर दूध बताकर पिलाया जाता देखकर उसके साथियों द्वारा उड़ाया गया मज़ाक राज्याश्रय का कारण बना। जिसने गरीबी नहीं देखी वह उसकी मार को नहीं समझ सकता। अंत में, रही बात राज्यनिष्ठा की, तो उसका दोष भीष्म आदि से बचकर केवल द्रोण पर कैसे गिर सकता है? कृष्ण जी तो वेतनिक नहीं थे, उन तक ने अपनी सेना दुर्योधन के लिए समर्पित कर दी थी फिर एक वेतनिक होते हुए द्रोण का युद्ध से पीछे हटना ऐसे ही होता जैसे कोई सैनिक शांतिकाल में तो तनख्वाह लेता रहे लेकिन युद्ध होते ही लड़ने जाने के बजाय नैतिक कारणो से इस्तीफा देने की बात करे। द्रोण ने मन से पांडवों के साथ होते हुए भी अपने सर्वप्रिय छात्र के विरुद्ध युद्ध का संचालन ईमानदारी से करते हुए, अर्जुन के साथ अपने सम्बन्धों के दुर्योधन के कटाक्ष सुनकर भी किया। ये सत्यनिष्ठा का एक अनुकरणीय उदाहरण है। अफसोस कि इतने ईमानदार व्यक्ति की हत्या की बेईमानी में कृष्ण और युधिष्ठिर जैसे ईमानदारों को अपनी ईमानदारी गिरवी रखनी पड़ी। Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-54984024590258618492015-07-19T14:32:17.915+05:302015-07-19T14:32:17.915+05:30द्रोण कभी भी एक गुरू के कर्तव्यों का निर्वाह कर ही...द्रोण कभी भी एक गुरू के कर्तव्यों का निर्वाह कर ही नहीं पाए | अगर देखा जाए तो उनका बहुत सा कार्य स्व-प्रेरित ही था | मेरी दृष्टी में वे एक अच्छे इंसान भी नहीं रहे कभी...|<br />बहुत अच्छा लगा, ज़माने बाद इस विषय पर कुछ पढ़ कर...|प्रियंका गुप्ता https://www.blogger.com/profile/10273874634914180450noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-19958860270829508812015-07-18T18:01:37.615+05:302015-07-18T18:01:37.615+05:30तुम्हारे द्रोंण से मुझे ड्रोन पर कविता लिखने का आइ...तुम्हारे द्रोंण से मुझे ड्रोन पर कविता लिखने का आइडिया आया, वो अलग बात, बेहतर नहीं लिख पाता हूँ !!मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-86458926010381373842015-07-18T14:58:56.413+05:302015-07-18T14:58:56.413+05:30आभार !!!आभार !!!निवेदिता श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/17624652603897289696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-64434778944349872722015-07-18T14:58:34.310+05:302015-07-18T14:58:34.310+05:30आभार !!!आभार !!!निवेदिता श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/17624652603897289696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-39732478625550068462015-07-18T14:53:17.263+05:302015-07-18T14:53:17.263+05:30भाई ,जल्दी ही कृष्ण पर भी पढोगे :)भाई ,जल्दी ही कृष्ण पर भी पढोगे :)निवेदिता श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/17624652603897289696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-49276888643081366622015-07-18T12:09:03.725+05:302015-07-18T12:09:03.725+05:30द्रोण से लेकर आधुनिक गुरुओं तक जितने के बारे में म...द्रोण से लेकर आधुनिक गुरुओं तक जितने के बारे में मैं जान पाया हूँ उससे बहुत अच्छी तस्वीर नहीं उभरती है मन में। ज्यादातर गुरू साधारण मानवीय कमजोरियों से ग्रस्त मिले हैं मुझे। गुरुघंटाल बनने को सदैव उद्यत। बस मौका चाहिए। छात्रों के बीच पक्षपात, जातीय व क्षेत्रीय पूर्वाग्रह, पठन-पाठन से इतर घटिया राजनीति में सहभागिता, प्रोजेक्ट हथियाने की होड़, नकल माफ़िया के आगे समर्पण या सहभागिता, यहाँ तक की खुद भी माफिया की तरह नकलबाज गिरोह के सरगना का साथ, आदि-आदि धत्कर्म में रत मिल जायेंगे तमाम गुरुजन।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-42529029790090457052015-07-18T12:08:39.032+05:302015-07-18T12:08:39.032+05:30द्रोण से लेकर आधुनिक गुरुओं तक जितने के बारे में म...द्रोण से लेकर आधुनिक गुरुओं तक जितने के बारे में मैं जान पाया हूँ उससे बहुत अच्छी तस्वीर नहीं उभरती है मन में। ज्यादातर गुरू साधारण मानवीय कमजोरियों से ग्रस्त मिले हैं मुझे। गुरुघंटाल बनने को सदैव उद्यत। बस मौका चाहिए। छात्रों के बीच पक्षपात, जातीय व क्षेत्रीय पूर्वाग्रह, पठन-पाठन से इतर घटिया राजनीति में सहभागिता, प्रोजेक्ट हथियाने की होड़, नकल माफ़िया के आगे समर्पण या सहभागिता, यहाँ तक की खुद भी माफिया की तरह नकलबाज गिरोह के सरगना का साथ, आदि-आदि धत्कर्म में रत मिल जायेंगे तमाम गुरुजन।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-43259672250936988502015-07-18T09:50:29.080+05:302015-07-18T09:50:29.080+05:30सत्य कहा है आप ने... मेरी ये रचना भी अवश्य पढ़ें.....सत्य कहा है आप ने... मेरी ये रचना भी अवश्य पढ़ें...<br /><a href="http://www.kuldeepkikavita.blogspot.in/2014/09/blog-post_6.html" rel="nofollow">ये पृष्ठ भूमि है इस रण की...</a>kuldeep thakurhttps://www.blogger.com/profile/11644120586184800153noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-54943730007791402962015-07-18T09:34:56.138+05:302015-07-18T09:34:56.138+05:30सही कहा है | उनसे जुड़े इस पक्ष की बात हमेशा होती र...सही कहा है | उनसे जुड़े इस पक्ष की बात हमेशा होती रही है | डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-21076308033810438652015-07-18T09:00:55.566+05:302015-07-18T09:00:55.566+05:30आपने सही कहा निवेदिता जी -द्रोणाचार्य द्रुपद से ...आपने सही कहा निवेदिता जी -द्रोणाचार्य द्रुपद से बदला लेने के लिए ही पांडवों को शिक्षा दी ! द्रोणाचार्य का हर कार्य के पीछे उसका स्वार्थ और अहंकार था ,गुरु के गरिमा से कोसों दूर ! आपने बड़े सुन्दर ढंग से उसे प्रस्तुत किया |आज मेरा भ्रम दूर हुआ कि शायद केवल मैं ही द्रोणाचार्य के बारे में ऐसा सोचता हूँ ,पर ऐसा नहीं आप जैसे प्रवुद्ध लोग भी ऐसा सोचते हैं | कालीपद "प्रसाद"https://www.blogger.com/profile/09952043082177738277noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-79249153079598528042015-07-17T18:39:12.441+05:302015-07-17T18:39:12.441+05:30आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-...आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-07-2015) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/" rel="nofollow"> "कुछ नियमित लिंक और आ.श्यामल सुमन की पोस्ट का विश्लेषण" {चर्चा अंक - 2040} </a> पर भी होगी।<br />--<br />सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।<br />--<br />चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।<br />जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।<br />हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।<br />सादर...!<br />डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंकडॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8823361892061198472.post-88068983875611684632015-07-17T18:35:32.387+05:302015-07-17T18:35:32.387+05:30मैं सीरियस रीडर कभी भी नहीं रहा !!
पर हाँ, अच्छा ...मैं सीरियस रीडर कभी भी नहीं रहा !! <br />पर हाँ, अच्छा लगा इतिहास के बारे में जानना !! वैसे भी हर व्यक्ति को जिस नजरिये से देखो, वो ऐसा दिखेगा, गलती तो कृष्ण में भी भरपूर थी ........मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.com