शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

अमावस की रात .......



अमावस की रात इतनी बेनूर सी सिसकी है
चाहत तो उसको भी थी खिलखिलाहट की
टिमटिमाते से सितारों  बगावत कर गये
कल आने का वादा कर दामन समेट गये
यूँ खुल के अंधेरा बरसा है किस के मन का
अपना साया भी अपनी राह भूल चल दिया ..... निवेदिता

11 टिप्‍पणियां:

  1. अंधकार को सटीक अभिव्यक्ति दी आपने, बहुत ही सुंदर, शुभकामनाएं.
    रामराम
    #हिन्दी_ब्लॉगिंग

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  2. मन का अन्धकार अमावस जैसा ही स्याह होता है

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " "कौन सी बिरयानी !!??" - ब्लॉग बुलेटिन , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. मन के अंधेरे की अमावस की रात से बहुत ही बढ़िया तुलना।

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