सोमवार, 28 अप्रैल 2014

गीता का ज्ञान ,पर किसके लिये .....





जब भी धर्म - अधर्म , नीति - अनीति , न्याय - अन्याय अथवा किसी निर्बल पर किसी निर्द्वंद ,निरंकुश के द्वारा किये गए अनाचार के परिणाम का जिक्र भी होता है , एकदम  तरल  भाव  से सहजता से अधिकतर "महाभारत" का ही उदाहरण देते हैं । महाभारत के जिक्र में ही कई भाव एक साथ प्रस्फुटित होते हैं । इस के मूल कारण के रूप में अनेक तथ्य भी दिखाते हैं । 

महाभारत मुझको अपने किसी और रूप से अधिक कर्मफल की  अवधारणा से अवमुक्त हो कर "कर्मयोगी" होने के लिए प्रेरित करता हुआ अधिक आकर्षित करता है । कुरुक्षेत्र के रण में युद्धपूर्व अर्जुन ने जब अपने ही आत्मीय स्वजनों को युद्ध के लिए तत्पर पाया ,तो वो युद्ध के बाद होने वाले समूल विनाश का आकलन  कर विचलित हो गए। उस समय अर्जुन के युद्ध-विरत होने से उत्पन्न परिस्थितियों की विकटता का आभास पा कर ,कृष्ण ने अर्जुन के मोहबंधन की कड़ियों को विश्रृंखल करने के लिए ,उनको कर्म की प्रमुखता का बोध करवाया और अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित किया । 

कृष्ण की ये सोच , कि  हर  व्यक्ति अपने कर्मफल के अनुसार ही जीवन व्यतीत करता है , अकसर सच ही लगती है । एक ही  परिवार के , एक   ही  परिवेश में पले - बढे दो व्यक्ति एकदम ही भिन्न स्तर से जीवन व्यतीत करते हैं - ये बात मात्र आर्थिक अथवा सामाजिक ही नहीं , अपितु मानसिक स्तर में भी लक्षित होती है । 

इन सब बातों से सहमत होते हुए भी मन बावरा अकसर ही बेबस सा एक जिज्ञासा का दंश दे ही देता है ! ये तथाकथित कर्मयोगी होने का ज्ञान क्या सच में सिर्फ अर्जुन के लिए ही था ? क्या अपनों के साथ युद्ध करने का कष्ट सिर्फ अर्जुन को ही था ? उस युद्धक्षेत्र में सिर्फ अर्जुन के  सामने  ही उसके  अपने नहीं थे , अपितु अपनी वचनबद्धता के फलस्वरूप कृष्ण के सामने उनके सारे अपने कौरवों की सेना के अंग बन कर युद्ध के लिए प्रस्तुत थे ! 

लगता है ,अर्जुन को दिया गया फलाफल की चिंता के बिना कर्म करने का ज्ञान कृष्ण ने स्वयं को भी दिया था। उस एक पल के कृष्ण मुझको तो एक ऐसे शिक्षक की तरह लगते हैं ,जो किसी प्रश्न पर स्वयं भी अटक जाने पर , बिना शिष्य को ये अटकना दर्शाये हुए , विभिन्न सूत्रों की सहायता से उस प्रश्न को स्वयं के लिए भी हल करने को प्रयासरत हो । 

बहरहाल ये ज्ञान चाहे कृष्ण ने अर्जुन को दिया हो अथवा स्वयं अपना ही आत्मबल बढ़ाया हो , पर परिणाम की परवाह किये बिना निर्लिप्त भाव से कर्म करने का सूत्र है बहुत काम का  ....... निवेदिता 

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

पूजा के कलश में प्रयुक्त वस्तुओं का महत्व


कलश :
कलश के विशिष्ट आकार के कारण उसके अंदर रिक्त स्थान में एक विशिष्ट सूक्ष्म नाद होता  है । इस सूक्ष्म नाद के कम्पन से ब्रम्हांड का शिव तत्व कलश की तरफ आकृष्ट होता है । 
समुद्र मंथन के  समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था । इसलिए एक मान्यता ये भी है कि कलश में सभी देवताओं का वास होता है । अत: पूजा में सबसे पहले कलश की स्थापना कर के देवताओं का आवाहन किया जाता है 

पानी 
कलश में पानी भर कर रखा जाता है । पानी को सर्वाधिक शुद्ध तत्व माना जाता है । संभवत: इसीलिये ये मान्यता भी है कि उसमें ईश्वरीय तत्व को आकृष्ट करने की क्षमता सर्वाधिक होती है । 

नारियल 
कलश पर नारियल रखने से उसकी शिखा में सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है ,जो कलश के जल में प्रवाहित होती है । इस प्रक्रिया में कलश में  जल में तरंगे एक नियमित लय में उठती हैं । 

पंचरत्न :
पंचरत्नों में देवताओं के सगुण तत्व ग्रहण करने की क्षमता होती है । कलश के जल में पंचरत्न रखना त्याग का भी प्रतीक माना जाता है । 

सप्तनदियों का जल : 
गंगा ,गोदावरी ,यमुना ,सिंधु ,सरस्वती ,कावेरी और नर्मदा - अधिकांश ऋषियों ने इन नदियों के तट पर ही देवताओं के तत्वों को प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी । सांकेतिक रूप में उनके तप के प्रभाव से शुद्ध हुयी नदियों के जल को हम देवताओं के अभिषेक स्वरूप कलश में रखते हैं । सप्तनदियों का जल न मिलने पर गंगा जल रखा जाता है ।

सुपारी और पान :
पान की बेल ,जिसको नागबेल भी कहते हैं , को भूलोक और ब्रम्ह्लोक को जोड़ने वाली कड़ी माना जाता है । इस में अवस्थित सात्विकता के फलस्वरूप इसमें भूमि तरंगों और ब्रम्ह तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है । कलश के जल में सुपारी डालने से उठने वाली तरंगे देवता के सगुण तत्व को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ाती हैं ।

तुलसी - दल :
तुलसी में वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता सर्वाधिक होती है । तुलसी अपनी सात्विकता से जल के साथ देवता के तत्व को भी वातावरण में प्रेषित करती है ।

हल्दी - कुमकुम :
हल्दी जमीन की नीचे उगती है इसलिए उसमें भूमि तरंगों का प्रभाव बहुत अधिक होता है । कुमकुम हल्दी से ही बनती है ।

आम के पत्ते :
कलश में सभी सामग्री रखने के बाद आम के पांच अथवा सात पत्तों से ढंका जाता है । ऐसी मान्यता है कि देवता के आवाहन से कलश में उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा आम की डंठल के द्वारा ग्रहण की जाती है ।               ....  निवेदिता

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

बस एक भटका हुआ ख़याल ......

अपने सपने कभी भी 
आँखों में न बसाये रखना 
बाँध टूटेंगे जब पलकों के 
अँसुवन संग बहते हुए 
समय की भँवर में 
अटकते - भटकते 
ना पा सकेंगे कोई ओर - छोर !

सपने तो बस सजा लेना 
अपने दिल की अबूझ सी 
अतल गराइयों में 
हर पल की मासूम सी 
धड़कती संवेदनाएं 
उनमें भर देंगी 
अलबेले रंगों की अनथकी उड़ान ! ..... निवेदिता