रविवार, 24 फ़रवरी 2013

समझौता या स्वीकार


हमको , अपने जीवन में किसी भी प्रकार का सामान , सम्मान , सम्बन्ध संस्कार या यूँ कह लें 
कि जो भी मिलता है उसके के साथ हम दो में से एक रास्ता ही अपनाते हैं ..... हम उसको या तो 
स्वीकार कर लेतें हैं या फिर उससे समझौता कर लेते हैं ।

स्वीकार करने में उसके प्रति एक सम्मान का भाव स्वयं ही आ जाता है , जबकि   किसी भी प्रकार 
का समझौता करने में उस पर एक प्रकार से तरस ही दिखाई देती है ।जब भी ज़िन्दगी अथवा किसी 
के भी साथ समझौता करते हैं ,तो किसी तीखे से लम्हे में उसकी छोटी सी कमी भी बहुत बड़ी लगने 
लगती है । जिस भी सम्बन्ध में स्वीकार का  भाव प्रमुख रहता है , उस में कोई भी कमी रह ही नहीं
पाती और जब भी ऐसी पूर्णता का भाव आ जाएगा , तब तो कुछ भी अप्राप्य नहीं रह सकता । 

स्वीकृति तो कैसा भी और कुछ भी अपने में ही समा लेने की प्रक्रिया होती है । 

तेरा तुझ में कुछ न बचा 
सब मुझमें गया समाय 
मैं भी मैं कहाँ रह पायी ,
ख्यालों में जब तुम आये 
चलो इस मैं और तुम को 
आज कहीं दफन कर आयें 
बस मुझमें तुम ,तुम में मैं 
चलो न अब हम बन कर 
जीवन में बढ़ जाएँ ..........
                     -निवेदिता 

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

अनकही वजह ........


माना  
बदलते वक्त के साथ 
कम हो ही जाता है 
छोटी चीजों का दिखना 
या मान लें    
वो चीजें ही हो जाती हैं 
बहुत छोटी ....

अँधेरे कोने 
कम अँधेरे लगते हैं 
तुम्हारी बातों की 
यादों के जुगनू 
साँसों के धडकने से 
चमक जाते हैं 
और बस 
मन में बसा अन्धेरा 
छट सा जाता है 

बेरंग से लम्हे 
सपनों की फुहार में 
इन्द्रधनुष से 
रंगों का 
चंदोवा तान 
काँटों की चुभन
अमलतास सा 
सहला - दुलरा 
जीने की 
अनकही वजह 
बन जाते हैं  ......
                 -निवेदिता 


गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

बस यूँ ही


प्यार ! कैसा है ये प्यार 
क्या जरूरी है इसके लिए 
सोलह साल का अल्हड़पन 
आती - जाती ऋतुओं से 
थामना बसंती पुरवाई को 
झिझकती ठिठकती तिथियाँ 
चुन लेना बस एक तिथि को 
कभी शमा रौशन करना  
कभी नम सी साँसें और ..
प्यार ! इसको नहीं चाहिए 
न कोई दिन , नही कोई लम्हा
नहीं रखता ख़्वाबों में भी तन्हा  
इसके लिए चाहिए सिर्फ 
धड़कनों में आती जाती बस 
चंद साँसें .........
             -निवेदिता 


मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

मन चाँदी - चाँदी हो गया .......

           "चाँदी" ये कहने को तो एक धातु है ,पर ये शुभ्रता , शुचिता , शीतलता , धवलता और निष्पाप होने के प्रतीक रूप में अधिक मान्य है । ये अकेली ऐसी धातु है जिसको हम निश्चिन्तमना  हो पाँव में भी पाजेब और बिछुवे के रूप में पहन लेते हैं , अन्य किसी भी धातु के साथ ऐसा नहीं है । स्वर्ण को लक्ष्मीजी का रूप मान पाजेब जैसे आभूषणों में प्रयोग नहीं किया जाता है । धार्मिक मान्यताओं के अतिरिक्त ,इसकी कीमत का कम होना इस को आमजन के लिए सहज सुलभ कर जाता है ।

           किसी के जीवन को अथवा उसके कृतित्व को ,अगर विशिष्ट परिधि में उत्सवित करना हो ,तब भी सबसे पहले हम उसकी रजत - जयंती  मनाते  हैं । जीवन  की  दिशा  को  निर्धारित करने में सबसे अधिक महत्व रखने वाला संस्कार , अर्थात विवाह उसकी भी वार्षिक वर्षगाँठ हम न्यूनाधिक रूप में मनाते हैं परन्तु जैसे ही चौबीस वर्ष हो जाते हैं एक विशद आयोजन की मांग सुनायी पड़ने लगती है अर्थात विवाह की रजत - जयंती की !

        अक्सर मैं सोचती थी कि इस पच्चीसवीं वर्षगाँठ में ऐसा विशेष क्यों होना चाहिए .... इसको इतने विशद रूप में   मनाने की अपेक्षा क्यों की जाती है | लगता यही था कि जैसी चौबीसवीं वर्षगाँठ वैसी ही तो पच्चीसवीं भी होती है । इसमें कुछ अलग होना समझ नहीं आता था । पर अब लगता है कि नहीं अन्तर तो होता है । विवाह  के  समय  एकदम  अलग और अनजाना सा परिवार और परिवेश मिलता है । उसमें भी एकदम अनजाने का जीवन का पर्याय बन जाना । जैसे - जैसे समय बीतता जाता है जीवन में नित नये दायित्व सामने आते हैं और हम उनका समाधान खीजते हुए अपने से जुड़े हुए नितांत निजी लम्हों की अनदेखी भी कर जाते हैं । पच्चीसवाँ वर्ष आते - आते जीवन एक संतुलन पा लेता हैं और एक सीमा तक कुछ दायित्व भी पूर्ण होने की राह पर आ जाते हैं ।अपने कार्यस्थल पर और व्यक्तिगत जीवन में भी अपनी पहचान बन चुकी होती है । बच्चों की भी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी हो चुकी होती है और वो भी अपने जीवन को एक सार्थक दिशा देने की स्थिति में आ चुके होते हैं । एक अभिभावक के रूप में एक सुकून मिल जाता है । अब जीवन के हर पल को हम अपनी रूचि के अनुसार जी सकतें हैं । बस ,शायद इसीलिये विवाह की रजत जयंती जीवन में आने वाले सुखद लम्हों को जी भर के जी लेने की एक सुखद शुरुआत है । अब ऐसे लम्हे होंगे  जो एकदम हमारी रूचि और विचारों के जैसे होंगे । 

        आप सब भी सोच रहे होंगे कि इतने अंतराल के बाद लिखा और वो भी विवाह की रजत - जयंती के औचित्य के बारे में बातें कर  रही हूँ । वैसे इसमें रहस्य जैसा कुछ है नहीं , पर चलिये हम बता भी देते हैं । दरअसल हमने अभी-अभी अर्थात  तीन फरवरी को हमारे विवाह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ उत्स्वित की है ....:)
       
                                                                                         -निवेदिता