रविवार, 25 नवंबर 2012

एक सम्मन नक्षत्रों का .....


आज एक कागज़ 
अपना पता पूछते 
फिर से चला आया 
हाँ !मेरे ही हाथों में 
समेटे हुए अपने में 
चंद गिनतियाँ और 
नाम भी नक्षत्रों के 
लगा एक सम्मन सा 
क्यों ? 
अरे उसमें टंका था 
मेरे नाम का 
प्रथमाक्षर .....
वो समय .. वो तिथि 
जब ली थी मैंने 
अपनी पहली सांस !
पता नहीं क्यों 
पर वो अजनबी सा 
अनपहचाना ही 
रह गया ...
शायद वो जन्म का 
बस एक नन्हा सा 
लम्हा बना रह गया 
जन्म - कुंडली सा 
विस्तृत - विस्तार 
अभिनव - आयाम 
तो तब मिला 
जब आये तुम साथ !
                            -निवेदिता 


18 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद सुन्दर रचना
    सादर, अरुन शर्मा
    www.arunsblog.in

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  2. पल पल में जब सदी छिपी हों,
    उद्गम पाछे नदी रुकी हों।

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  3. बहुत ख़ूब!
    आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 26-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ख़ूब!
    आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 26-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  5. बहुत ख़ूब!
    आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 26-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  6. kya kahu? bas dil ko chu gayi puri rachna.....bilkul alag si alag si lagi...

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  7. सुन्दर रचना।
    मेरी नयी पोस्ट "10 रुपये का नोट नहीं , अब 10 रुपये के सिक्के " को भी एक बार अवश्य पढ़े । धन्यवाद
    मेरा ब्लॉग पता है :- harshprachar.blogspot.com

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  8. यह विस्तार भी शायद उस कागज में लिखा था :):)

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